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Tuesday, January 14, 2014

"मच्छर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"मच्छर"
झूम-झूमकर मच्छर आते।
कानों में गुञ्जार सुनाते।।
नाम ईश का जपते-जपते।
सुबह-शाम को खूब निकलते।।

बैठा एक हमारे सिर पर।
खून चूसता है जी भर कर।।
नहीं यह बिल्कुल भी डरता।
लाल रक्त से टंकी भरता।।

कैसे मीठी निंदिया आये?
मक्खी-मच्छर नहीं सतायें।
मच्छरदानी को अपनाओ।
चैन-अमन से सोते जाओ।।

2 comments:

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