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Wednesday, December 25, 2013

"मेरी रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालगीत
"मेरी रेल"
इंजन-डिब्बों का है मेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

इंजन चलता आगे-आगे,
पीछे-पीछे डिब्बे भागे,
सबको अच्छी लगती रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

मैट्रो ट्रेन बनाई मैंने,
इसको बहुत सजाई मैंने,
मम्मी देखो मेरी रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

कल विद्यालय में जाऊँगा,
दीदी जी को दिखलाऊँगा,
दो पटरी पर चलती रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

5 comments:

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