सुन्दर तन पाया है तुमने, लेकिन बहुत घमण्डी हो। नहीं जानती प्रीत-रीत को, तुम चिड़िया उदण्डी हो।। जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर, तुम आगे को बढ़ती हो। अपनी सखी-सहेली से तुम, सौतन जैसी लड़ती हो।। भोली-भाली चिड़ियों को तुम, लड़कर मार भगाती हो। प्यारे-प्यारे कबूतरों को भी, तुम बहुत सताती हो।। मीठी बोली से ही तो, मन का उपवन खिलता है। अच्छे-अच्छे कामों से ही, जग में यश मिलता है।। बैर-भाव को तजकर ही तो, अच्छे तुम कहलाओगे। मधुर वचन बोलोगे तो, सबके प्यारे बन जाओगे।। |
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Wednesday, December 21, 2011
"सबके प्यारे बन जाओगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बाल कविता
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